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मैं आज की नारी: एक आत्मकtha – राष्ट्रीय महिला आयोग की आभारी हूँ

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Subject: मैं आज की नारी: एक आत्मक

i thikh that every wife who intenciantioly miscues the women protection laws like 498a dv act crpc 123 etc …. are realizing after 3 to 4 years visiting several times in court that they have done big mistake to destroy there happy married life and get nothing satisfaction for they had taken the action against her husband and her in laws . so all brother not to worry about these legal terroissm and keep on fighting in court for several years because court is not in hurry to give justice . so keep up u r morale confidence strong and take more care of our elder parents… and u can imagine u r self the practical condition of u r beloved darling… after takening wrong action.

SAACH THODI DER KI LIYA PARESAN HO SAKTA HAI

PARZEET KHABHI NAHI HO SAKTHA

( TRUTH IS ALWAYS TRUTH )

regards

rajesh vakharia

siff nagpur

note .. A poem in Hindi written by our Volunteer Chanakya

नमस्कार

मैं आज की सक्षम नारी हूँ
राष्ट्रीय महिला आयोग की आभारी हूँ

मैं उस विलुप्त मूर्ती की एक अन्तिम अवशेष हूँ
जिसे कभी माता शब्द से पहचाना जाता था

मैं मेरे माता पिता की लाडली हूँ
मैं मुक्त हूँ, मैं मनचली हूँ
घरेलू काम से वंचित, मुझसे कोई भी काम नही करवाया है
सोचती हूँ की इस मुक्ती से, क्या मैंने पाया है?

नारी कभी सहनशीलता और संस्कृति की मूर्ती थी
नारी कभी सक्षम सुंदर और सम्पूर्ण परिवार की स्फूर्थी थी
आज मैं न सहनशील हूँ और नाही सक्षम हूँ
सम्पूर्णता में मेरे नारी पूर्वजों से कई गुना कम हूँ
न मैं गृहस्ती संभाल पाऊँ , और नही पति की सहचारी हूँ
मैं आज की अस्थिर, अपर्याप्त और असम्पूर्ण नारी हूँ
राष्ट्रीय महिला आयोग की आभारी हूँ

मदिरा सेवन के विरुद्ध कई हमने निदर्शन किए
इस प्रकार के कई समाज सेवक प्रदर्शन किए
आज मैं पूर्ण मुक्ती से मदिरा सेवन करती हूँ
धूम्रपान के कलुषित धूम्र में स्वास लेती हूँ
आज्ञापत्र पकडाई है मुझे देश के उन्नत नारी ने
पंख प्रदान किए है मुझे शाशन की अधिकारी ने

अनुशाशन हीन शाशन की अवैद कर्मचारी हूँ
कहने को मैं आजकी नारी हूँ
राष्ट्रीय महिला आयोग की आभारी हूँ

जानती थी मैं की नारी के प्रति सामाजिक सत्कार था
न्यायशास्त्र का दुरुपयोग मेरा जन्मसिद्ध अधिकार था
शोक ग्रस्त है एक परिवार , सदैव जहाँ पर प्यार था
पति बेच कर धन मै पाऊँ , ऐसा कुछ विचार था

न मेरे पास आज पति है, और नही मेरी परिवार है
न मेरी अभिमान मेरे पास है , और नाही किसीका प्यार है

माता पिता वृद्ध है आज, और भाई सुखी गृहस्त है
मुझे इस स्तिथी में लाने वाले आज सभी बहु व्यस्त हैं
किसीका साथ नही है आज, और धन से भी कुछ भोग नही
सुखी गृहस्ती जीवन का , इस जीवन में मुझे योग नही
क्या मैं बन पाऊंगी आज, पुन: किसीकी प्रिया?
क्या मैं जोड़ पाऊंगी रिश्ते , जिसको मैंने तोड़ दिया?
दुष्ट आयोग की प्रेरणा से, हर कोई सुख मैं हारी हूँ
आज मैं सचमुच एक अबला दुखित नारी हूँ

राष्ट्रीय महिला आयोग की आभारी हूँ

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